डार्क हॉर्स
झोला बोला पकड़ने की जरूरत नहीं। चाँदनी चौक जा रहा हूँ। कॉटन है इसमें कोई भारी सारी नहीं है। चालीस साल से यही पकड़े चल रहा हूँ। ओए आगे बढ़ो भई।" बुढ़ऊ ने संतोष को कहते हुए आगे वाले को खोचा। "अरे कपार पर चढ़ जाएँ आगे जाके क्या टोकन दे नहीं रहा है। आगे वाला बढ़ेगा
तब न बढ़ेंगे कोंच रहे है पीछे से एकदम " बूढ़े के आगे वाले व्यक्ति ने खीज से कहा। वृदा समझ गया आगे वाला आदमी चालीस बरस का होकर भी मिजाज में उसका बाप है। सो उसने चुप रहना ठीक समझा। तब तक बूढ़े के ठीक पीछे वाले व्यक्ति ने बूढ़े के कंधे
पर कान ले जाकर पूछा, "क्या हुआ अंकल?" "कुछ नई जी, टोकन नूँ घुस रहा था लौंडा अजी हम लाइन में खड़े हैं इत्ती देर से बेवकूफ हैं क्या कह रहा था, लाइए आपकी पकड़ दें। अबे मेरी क्या पकड़ेगा, अपनी पकड़ हैं।" बुड्ढे ने बिना पीछे मुड़े कहा इतना सब सुन संतोष मन-ही-मन बुढक को गरियाता हुआ पीछे लाइन में जाकर खड़ा हो गया। अब तक लाइन और लंबी हो गई थी अभी-अभी गाँव से निरीह बुढ़ापा देख आए संतोष को दिल्ली का सयाना बुढ़ापा एकदम अमरीश पुरी टाइप लगा। सोचने लगा, 'साला, चाचा शब्द भी फेल हो गया। हम सबके तरफ तो चाचा कहने की गर्माहट से चोर डकैत, पुलिस दरोगा जैसा मोटा चदरा भी पिघल जाता है। यहाँ साला छेद तक नहीं हुआ। उसकी अपनी भावना में समझा जाए तो मुड झेंटुआ गया था उसका 'अँटुआना' आदमी के खिन्न होने की चरम अवस्था को कहते हैं। लगभग बीस मिनट तक खड़े लाइन में चलने के बाद उसका नंबर आया। "भइया एक विश्वविद्यालय स्टेशन का टोकन दे दीजिए।" संतोष ने पाँच सौ का नोट देते हुए कहा।
"बैज दे दो भई। " काउंटर वाले ने कहा "बेज नहीं है सर।" संतोष ने स्वर नीचे करके कहा।
"चलो देख लो भई, हटो साइड आ जाओ पीछे वाले को आने दो।" काउंटर वाले ने
अपना हाथ उचकाते हुए कहा संतोष एकदम खिन्न मन से साइड हो गया। "साला, सर शब्द भी फेल।" यही सोचा उसने मन में उसके सारे शब्द चुके जा रहे थे यहाँ वह धीरे-धीरे समझ रहा था कि यह शहर शब्दों से परे है, भावनाओं से परे है। संतोष साइड में खड़ा लोगों द्वारा दिए जा रहे हर नोट को बड़ी उम्मीद से देख रहा था कि जल्द पाँच सौ का खुदरा पूरा हो जाए।
"लाओ जल्दी से पैसे, कहाँ का दूँ?" अचानक अपने पैसे वाले दराज को देखते हुए काउंटर वाले ने संतोष से कहा। संतोष ने साइड से ही खड़े-खड़े झट से अपना हाथ काउंटर के शीशे के गोल छेद में घुसा दिया और बोला, "हाँ. विश्वविद्यालय का चाहिए सर।" टोकन लेकर संतोष अंदर प्लेटफॉर्म पर जाने की लाइन में खड़ा हो गया। लाइन में आगे सरकते हुए जैसे ही उसने अपने दोनों बैग और झोला स्कैनर मशीन में डाले एक क्षण में ही यह विचार उसके मन में काँध गया कि स्कैनिंग में सत्तू ठेकुवा, निमकी और लिट्टी का फोटो देख पता नहीं क्या छवि बन जाएगी इन जाँच करने वाले सिपाहियों के मन में। एकदम देहाती समझेंगे पक्का बैग के मशीन से बाहर निकलते ही यह डर भी मन से निकल गया। बैग उठाकर संतोष ने एंट्री गेट पर टोकन टच कराया और गेट के खुलते